भाखड़ा डैम बनाने वाले हरियाणा के इंजीनियर ने रख दी थी पंडित नेहरु के आगे अजीब शर्त
भाखड़ा डैम
भाखड़ा डैम बनाने वाले हरियाणा के इंजीनियर ने रख दी थी पंडित नेहरु के आगे अजीब शर्त
हरियाणा में भाखड़ा की परियोजना आई तो यहां की खेती की तस्वीर बदल गई। भाखड़ा प्रोजैक्ट के बाद नहरों का जाल बिछा सिरसा, फतेहाबाद, हिसार सहित कई इलाकों में खेती का पूरा रूप ही बदल गया।
अकेले सिरसा जिला में 107 छोटी बड़ी नहरें, माइनर और डिस्ट्रीयब्यूटरी हैं। आज भाखड़ा के नीले पानी से हर साल लाखों हैक्टेयर फसल सिंचित होती है। पंडित जवाहर लाल नेहरु का ड्रीम प्रोजैक्ट भाखड़ा डैम का खाका खींचा था हरियाणा के कंवर राय सेन गुप्ता ने। कंवर राय सेन गुप्ता हरियाणा के टोहाना के रहने वाले थे।
अंग्रेजी हुकूमत के वक्त कंवर राय सेन अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सिविल इंजीनियर थे। बीकानेर रियासत में भी वे रहे। जिस भाखड़ा डैम को नेहरु ने देश के मंदिर की संज्ञा दी उस परियोजना को साकार किया हरियाणा के कंवर राय सेन गुप्ता। गुप्ता चूंकि हरियाणा से थे। ऐसे में अपने इलाके में भाखड़ा के पानी, नहरों के जाल और एक बड़ा डैम बनाने को लेकर उन्होंने पंडित नेहरु के आगे शर्त रख दी। भाखड़ा डैम बनाने का काम कंवर साहब ही पूरा कर सकते थे, यह बात नेहरु जी जानते थे। ऐसे में पंडित जी उनकी बात मानी और इस तरह से हरियाणा में नहरों का जाल बिछा, भाखड़ा का पानी आया और हरियाणा के टोहाना में बलियाला हैड भी बना।
दरअसल देश के आजाद होने से पहले ही भाखड़ा डैम बनाने की पहल की गई थी। दीनबंधू और किसानों के मसीहा सर छोटूराम की ओर से यह पहल की गई। देश आजाद होने के बाद 1948 में इस परियोजना पर काम शुरू हुआ। चीफ इंजीनियर कंवर सेन के निर्देशन में। कंवर सैन हरियाणा के रहने वाले थे। उनकी गिनती देश के सबसे बेहतरीन इंजीनियर में होती थी। वे एक बाकमाल और बेमिसाल सिविल इंजीनियर थे। अंग्रेजी हुकूमत में कंवर राय सेन नामुमकिन परियोजनाओं को सिरे चढ़ा चुके थे। भाखड़ा डैम बनाने को लेकर कंवर राय सेन ने पंडित जवाहर लाल नेहरु के आगे एक अनूठी शर्त रख दी।
अपने शहर टोहाना में हैड बनाने के साथ ही नहरों का जाल बिछाने। उनकी शर्त को माना गया। इसीलिए हरियाणा के कई हिस्सों में भाखड़ा का पानी आया और टोहाना में बलियाला हैड बना। आज इस हैड से सात अलग-अलग नहरें निकलती हैं। एक बड़ी नहर राजस्थान के गंगानगर में जाती है। कुछ सिरसा में। इस हैड पर एक रेस्ट हाऊस बना हुआ है। यहां का मनमोहक दृश्य हर किसी को अपनी ओर खींचता है। ऐसे में लोग यहां पिकनिक मनाने आते हैं। सबसे खास बात इस हैड के बनने से राजस्थान हरियाणा की खेती की तस्वीर उजली हो गई है।
देश के जाने-माने इंजीनियर थे कंवर सेन
दरअसल कंवर सेन गुप्ता देश के बहुत बड़े इंजीनियर रहे। कंवर सेन गुप्ता का जन्म 1899 को टोहाना में हुआ। उन्होंने डीएवी कॉलेज लाहौर से ग्रेजुएशन किया। 1927 में रुडक़ी के थॉमसन कालेज ऑफ इंजीनियङ्क्षरग से सिविल इंजीनियङ्क्षरग की। 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण से सम्मानित किया। वे आजादी से पहले बीकानेर रियासत में चीफ इंजीनियर थे। भाखड़ा-नंगर डैम परियोजना को कंवर सेन ने ही बनाया था। जवाहर लाल नेहरु का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था।
किसानों के मसीहा दीनबंधू सर छोटू राम ने साल 1944 में इस महत्वपूर्ण परियोजना को लेकर बिलासपुर रियासत के राजा से संधि की। देश के जाने-माने इंजीनियर कंवर सेन गुप्ता को परियोजना की कमान दी गई। अपनी बेबाकी के लिए मशहूर कंवर सेन ने नेहरु के आगे एक अनोखी शर्त रख दी। कंवर सेन हरियाणा के टोहाना से ताल्लुक रखते थे। ऐसे में उन्होंने टोहाना में भी एक बड़ा हैड बनाने की शर्त नेहरु के आगे रखी। नेहरु मान गए। इसके बाद भाखड़ा डैम का काम 1948 में शुरू हुआ
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देश की साख है भाखड़ा डैम
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में सतलुज नदी पर बना भाखड़ा नागल बांध देश का सबसे लंबा बांध है। यह टिहरी बांध के बाद देश का दूसरा सबसे ऊंचा और दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा बांध है। इससे बड़ा बोल्डर बांध अमेरिका में है। 22 अक्टूबर 1963 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसका शुंभारम्भ किया था।
इसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई और बिजली उत्पादन है। इस बांध पर लगे पनबिजली संयंत्र से 1325 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है जिससे पंजाब के अलावा हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में बिजली की आपूर्ति होती है। इस परियोजना के उद्घाटन के समय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था
‘भाखड़ा नांगल परियोजना में कुछ आश्चर्यजनक, विस्मयकारी है, जिसे देखकर आपके दिल में हिलोरें उठती हैं। शिवालिक पहाडय़िो के बीच बना भाखड़ा बांध 740 फीट ऊंचा और 1700 फीट लंबा है। आधार में इसकी चौड़ाई 625 और ऊपर 30 फीट है। वहीं इससे 13 किलोमीटर दूर नीचे स्थित नागल बांध 95 फीट ऊंचा और 1000 फीट लंबा है। यह राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान की हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत है। इस परियोजना से श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझनू और चुरू जिलों के अलावा 250 से अधिक छोटे बड़े गांव और कस्बों की लाखों हैक्टेयर भूमि ङ्क्षसचित होती है।